Arz Kiya Hai

Aadha sher humne arz kiya hai,
Barabar ka hissa, mehfil se liya hai.

Friday, March 03, 2006

ऐ चंचल बेवफा साथी
तुम फिर हमें छोड़ चले?
अन्जुमन में अभी तो बसे थे
तुम बेइत्तिला मुख मोड़ चले?

मेरे रोके, तो क्या रुकोगे
इस जीवन का यही सिला
अपनी डोर तो तुमसे बंधी है
मेरी तुमसे बस यही गिला

मुसाफिर की बंदिश
बस यही धोका है
कि वक्त के सफर को
भला किसने रोका है