Arz Kiya Hai

Aadha sher humne arz kiya hai,
Barabar ka hissa, mehfil se liya hai.

Wednesday, July 04, 2012

क्या दिन थे वो
हम अर्ज़ किया करते थे
ग़ज़लों में ज़िन्दगी
घोल के जिया करते थे

Tuesday, April 17, 2007

अब तो हुज़ूर लिखने में बड़ा मज़ा आया,
जो Google ने क्या कमाल का transliterator बनाया!
बरसों की ख़्वाहिश थी, सीधे हिंदी में लिखें हम,
अब जा के आया इस काम में कुच्छ दम!

Friday, March 23, 2007

क्या फिर कभी आऐगा
वो हँसता हुआ सुकून
मस्तमौला आँखें
वो मन बहकाता जुनून?

ये पल अभी ना गुज़रे
कुछ यादें निचोड़ लूँ
अपने नसीब के बिखरे
कुछ टुकड़े तो जोड़ लूँ

Tuesday, November 14, 2006

बच्चों का दिन

उन दिनों की दिली गुज़ारिश
रातों के पहले ख्वाब
कब हम बङे होंगे
बस यही कहलाता है
बचपन का बचपना

Monday, August 07, 2006

जवानी

इतने करीब से इतनी दूर चलने तक
इस दीवाने का ख्याल तो किया होता
काश तेरी महफिल के ढलने तक
हमने एक जाम और पिया होता

Saturday, April 22, 2006

बो एक तमन्ना दलदल में कुछ ऐसे बह गयी
अब बस कोई तमन्ना ना होने की तमन्ना रह गयी

Friday, March 03, 2006

ऐ चंचल बेवफा साथी
तुम फिर हमें छोड़ चले?
अन्जुमन में अभी तो बसे थे
तुम बेइत्तिला मुख मोड़ चले?

मेरे रोके, तो क्या रुकोगे
इस जीवन का यही सिला
अपनी डोर तो तुमसे बंधी है
मेरी तुमसे बस यही गिला

मुसाफिर की बंदिश
बस यही धोका है
कि वक्त के सफर को
भला किसने रोका है