फ़िर क्या कहैं उस मुसाफ़िर को हम,
दिख रहे हैं जिसके बढ़ते कदम.
मुकाम एक और हासिल तो कर लिया है,
अफसोस, मंज़िल से फासला भी बढ़ लिया है.
दिख रहे हैं जिसके बढ़ते कदम.
मुकाम एक और हासिल तो कर लिया है,
अफसोस, मंज़िल से फासला भी बढ़ लिया है.
4 Comments:
ऐसे कौनसे ख्याल ने
इस भावना को जताया है
शायद उसी चेतना ने
तेरी मंज़िल का पता बताया है?
दोस्त, कभी सोचो --
इन भारी प्रयासों से
भला कौनसा गुल खिला है
यूँ दिन-रात काम करके
तुझे कितना सुख मिला है
very nice....
the papa of the blogger says
The attempt is very good , you should use bigger hindi font to give the shayari a better feel good factor
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